ह्रदयोदगार...
जो आपने जलाई थी ज्ञान की मशाल। जलती रहे सदा वो अविरल असंख्य साल।।
अपनी न थी इमारत, संख्या भी बहुत कम थी, थी आय अल्प लेकिन उत्साह की चरम थी,
अधिकार कर्म केवल फल का नहीं मलाल, जलती रहे...
सेवा में रहे जब तक उत्साह से पढ़ाया, पुस्तक लिखी गणित की और ज्ञान निधि बढ़ाया,
शिक्षा के क्षेत्र में है किया आपने कमाल, जलती रहे...
है आप कर्म योगी गीता से मिली शिक्षा, आगे कदम बढ़े हैं। मिलती है उच्च शिक्षा,
शिक्षा के क्षेत्र में है सर आप बेमिसाल, जलती रहे...
लहराया दो जिलों में है ज्ञान का जो रुपचम 19 शाखाओं के रूप में बढ़ रहे हैं कदम,
शिक्षा प्रसार का है कितना रखा ख्याल, जलती रहे...
उत्पाद पायनियर के हैं बन चुके वैज्ञानिक, इंजीनियर चिकित्सक कितने ही श्रेष्ठ कामिक,
करते हैं देश सेवा रचा मचा धमाल, जलती रहे...
इच्छा प्रकाश इसकी, श्री वृद्धि होती जाए, स्वर्णाक्षरों में इसका नित नाम जगमगाए,
प्रतिदिनता करे जो किसी ने ये मजाल। जलती रहे सदा वो अविरल असंख्य साल।